लोगों की राय

गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

341 पाठक हैं

प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

सात्त्विक आहार क्या है?

आयुःसत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः।
रस्या स्त्रिग्धाः स्थिरा हद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः।।

(गीता १७। ८)

जो ताजा, रसयुक्त, हलका, स्नेहयुक्त, पौष्टिक, हद्य और मधुर हो और जिससे आयु, सत्त्व, बल, आरोग्य, सुख और प्रीति बढ़ती हो, उसे सात्त्विक आहार कहते हैं। जैसे गेहूँ चावल, जौ, साठी, मूँग, अरहर, चना, दूध, घी, ऊँख, फल, सेंधा नमक, रतालू, शकरकन्द, तरकारियाँ शाक इत्यादि। शाकोंमें घीया, तुरई, खीरा, पालक, मेथी आदिका विशेष महत्त्व है। ये हलके, सुपाव्य तथा शुभ प्रवृत्तियाँ उत्पन्न करनेवाले पदार्थ हैं। फलोंमें आम, तरबूज, खरबूजा, आलूबुखारा, नारंगी इत्यादि उत्तम हैं। दही भूलोक का अमृत है। सात्त्विक पुरुष दही, छाछ, मक्खन इत्यादिका खूब प्रयोग कर सकते हैं।

स्वामी शिवानन्दजीके अनुसार हरे ताजे शाक, दूध, घी, बादाम, मक्खन, मिश्री, मीठे संतरे सेव, अंगूर, केले, अनार, चावल, गेहूँकी रोटी, मखाना, सिंघाड़े और काली मिर्चका सेवन किया जा सकता है। सात्त्विक आहारसे चित्तकी एकाग्रता प्राप्त होती है। दहीकी लस्सी, मिश्रीका शरबत, नारंगी, नीबूके रसका प्रयोग सात्त्विक है। नीबूको खटाईमें गिनना भूल है। साधक इसका सफलतापूर्वक प्रयोग कर सकते हैं। इससे पित्तका शमन होता है तथा रक्त शुद्ध होता है। एकादशीके दिन अन्नका परित्याग कर दूध और फलोंका सेवन करना चाहिये। इससे इच्छाशक्ति बलवती होती है तथा जिह्वापर नियन्त्रण प्राप्त होता है।

प्रसिद्ध आत्मवादी डा० दुर्गाशंकर नागरकी सम्मति इस प्रकार है-'आध्यात्मिक पुरुषको अवस्था, प्रकृति, ऋतु तथा रहन-सहनके अनुसार विचारकर शीघ्र पचनेवाला सात्त्विक भोजन करना चाहिये। फलाहार सब आहारोंमें श्रेष्ठ है। संतरे, सेव, केले, अंग्ह, चूसनेके आम आदि फल उत्तम होते हैं। फलाहारसे उतरकर अन्नाहार है। रोटी, मूँग, अरहरकी दाल, चावल, शाक, भाजी, दूध, मक्सन, घी आदिका समावेश अन्नाहारमें होता है। आटा हाथका पिसा हुआ चोकरसहित उपयोगमें लेना चाहिये।

गेहूँ और जौ सत्त्वगुणी अनाज है; चनेका अधिक उपयोग वायुकारक होता है। कच्चे चनेको छिलकेसहित भिगोकर नसें फूटनेपर खाना बलकारी है। यही बात मूँगके सम्बन्धमें भी है। दालोंमें मूँग, मोठ, अरहर श्रेष्ठ है। सिंघाड़े, शकरकन्द सत्त्वगुणी है। चावल हितकर अनाज है। जो इसे पचा सकें, अवश्य लें। फलोंके रस, बादाम, खीरेके बीज, सौंफ, इलायची, गुलाबके फूलोंकी ठंडाई मिश्री मिलाकर पीना उत्तम है। गुड़ सवोंत्कृष्ट मीठा है। गोदुग्ध सात्त्विक है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book